Saturday 7 December 2013

हिन्दी फिल्मों का सबसे लंबा गाना

अनोखी और दिलचस्प जानकारी [20]
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Longest Hindi Film Song 
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"अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों …" गाना हिन्दी फिल्मों का सबसे लंबा गीत है ! इस गाने की अवधि 'बीस मिनट' है, जो कि फ़िल्म के अंदर तीन चरणों में फिल्माया गया है ! गीतकार समीर के लिखे एवं अनु मालिक के संगीत निर्देशन में इस गाने को अलका याग्निक, सोनू निगम, उदित नारायण और कैलाश खेर ने गाया !

Song - Ab Tumhare Hawale Watan Sathiyo
Movie - Ab Tumhare Hawale Watan Sathiyo
Singer - Alka Yagnik, Kailash Kher, Sonu Nigam, Udit Narayan

Artist - Amitabh Bachchan, Akshay Kumar, Boby Deol, Nagma
Lyricist - Sameer
Music - Anu Malik
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गौरतलब है कि "अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों" गाने को 
"लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स" में भी दर्ज़ किया गया है :
http://www.limcabookofrecords.in/recorddetails.aspx?recid=145 
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Friday 6 December 2013

हिंदी फिल्मों में पार्श्वगायन के रूप में पहला गाना : हिंदी सिनेमा के दुर्लभ गाने - 14

First Use of Playback Singing in Indian Films
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हिंदी फिल्मों में पार्श्वगायन (Playback Singing) 1935 में शुरू हुआ, जब ऐसे कलाकारों ने प्रवेश किया जो अभिनय तो नहीं करते थे, लेकिन गायन करते थे ! इनमें शमशाद बेगम, जुथिका रॉय, गीता रॉय [दत्त], पारुल घोष आदि गायिकाएँ थीं !

[First use of playback singing in Indian films were in films directed by Nitin Bose in 1935 : first in 'Bhagya Chakra', a Bengali film and later in the same year, in its Hindi remake 'Dhoop Chhaon'.]

नितिन बोस की फिल्म 'धूप -छाँव' के इस गाने को 
पार्श्व गायन की शुरुआत का श्रेय जाता है :
प्रेम की नैय्या चली जल में मोरी
Prem ki naiyya chali jal mein mori

Film : Dhoop Chhaaon (1935)
Singers : Pahadi Sanyal and Uma Shashi
Music Composer : RC Boral
Lyrics : Pt Sudarshan
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Thursday 5 December 2013

तुम्हे अपना बनाने की कसम खायी है : Copied or Inspired Song - 16]

Copied or Inspired By Other Song [16]
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1991 में संजय दत्त, पूजा भट्ट, दीपक तिजोरी और सदाशिव अमरापुरकर अभिनीत और 'रवि चोपड़ा' निर्देशित सुपर हिट फ़िल्म- 'सड़क' प्रदर्शित हुयी थी, जिसमें एक गाना- 'तुम्हे अपना बनाने की कसम खायी है, खायी है' बहुत ही लोकप्रिय हुआ था ! गीतकार 'समीर' के लिखे इस गीत को 'नदीम-श्रवण' के संगीत निर्देशन में 'अनुराधा पौडवाल' और 'कुमार सानू' ने गाया था ! 

क्या आपको मालुम है कि दरअसल इस गाने की धुन को पाकिस्तान की फ़िल्म अभिनेत्री मुसर्रत नज़ीर के गाये एक गाने- 'चले तो कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता-आहिस्ता' से कॉपी किया गया था ! यह गाना मुसर्रत नज़ीर ने 80 के दशक में पाकिस्तान टीवी के लिए गाया था ! इस गाने के गीतकार थे - 'मुस्तफा ज़ैदी, और संगीत निर्देशक थे - खलील अहमद ! आईये आज 'ओरिजिनल' और 'कॉपी' हुए दोनों गानों को सुनते हैं :
[Original Song]
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चले तो कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता, आहिस्ता
हम उसके पास जाते थे मगर आहिस्ता, आहिस्ता
Chale To Kat Hi Jayega Safar Aahista, Aahista
Ham Uske Pas Jate The Magar Aahista, Aahista

[This is a Beautiful Poetry by Mustafa Zaidi that was Sung by Pakistani Film Actress Musarrat Nazir for Pakistan Television during the early 80’s]
गायिका - मुसर्रत नज़ीर
संगीत - खलील अहमद  
गीतकार - मुस्तफा ज़ैदी
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[Copied / Inspired Song]
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- गाना -
तुम्हे अपना बनाने की कसम खायी है, खायी है
तेरी आँखों में चाहत ही नजर आयी है, आयी है
Tumhe Apna Banane Ki Kasam Khayi Hai, Khayi Hai
Teri Aankho Me Chaahat Hi Najar Aayi Hai, Aayi Hai
फ़िल्म - सड़क (1991)
गायक - कुमार सानू, अनुराधा पौडवाल
संगीत - नदीम श्रवण
गीतकार - समीर
कलाकार - संजय दत्त, पूजा भट्ट

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End
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Wednesday 4 December 2013

गायिका शारदा - [गुमनाम गायक/गायिका - 8]

गुमनाम गायक/गायिका - [8] 
गायकों का पहला / आखिरी गाना - [10] 
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Singer Sharda
आज जानते हैं हिंदी फिल्मों के 60वें दशक की मशहूर पार्श्व गायिका शारदा के बारे में जिन्होंने अपनी विशेष छाप छोड़ी और फिर फ़िल्मी दुनिया से गायब हो गयीं।

गायिका शारदा जी (पूरा नाम शारदा राजन आयंगर) का जन्म दक्षिण भारत में हुआ और फिर वहाँ से ये मुम्बई गयीं और बाद में अपने परिवार के साथ तेहरान चली गयीं। वहीँ राज कपूर से उनकी मुलाकात हुई। तमिल भाषी होने के बावजूद उन्हें हिंदी गीतों में अधिक रूचि थी। वे हिंदी फिल्मों के बारे में अपनी चचेरी बहन (जो उत्तर भारत में रहती थीं) से बहुत सुना करती थी नूरजहाँ के गीत सुनने को वे चाय  या पान की दूकान पर भी रुक जाया करतीं। हिंदी बोलना नहीं आता था परन्तु मुम्बई शिफ्ट होने के बाद हिंदी बोलना सीखा। उनकी माता जी को कर्णाटक संगीत का ज्ञान था परन्तु उन्होंने मुम्बई में ही संगीत की शिक्षा ली

राज कपूर ने उन्हें तेहरान में एक पार्टी में गाते सुना तो उन्हें मुम्बई आने का निमन्त्रण दे डाला। मुम्बई [पहुँच कर उन्होंने आर के स्टूडियो में अपना ऑडिशन दिया, जिसमें उन्होंने बरसात फिल्म का गाना "मुझे किसी से प्यार  हो गया" और "बिछुड़े हुए परदेसी" सुनायाऑडिशन में उन्हें सुनने वालों में राज जी के अलवा उनकी पत्नी कृष्णा जी और रणधीर और ऋषि कपूर भी थेयहीं से शारदा जी के लिए फिल्मी दुनिया के दरवाज़े खुल गए

राज जी ने उन्हें शंकर जयकिशन के पास भेजा जहाँ उन्हें पार्श्व गायन के लिए प्रशिक्षित किया जाने लगा उनका पहला गाना फिल्म सूरज [1966] में  "तितली उडी" था जिस के लिए उन्हें फिल्मफेयर का विशेष अवार्ड भी मिला क्योंकि रफ़ी साहब के नॉमिनेटेड गीत 'बहारों फूल बरसाओ' के बराबर वोट मिले थे

फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का अवार्ड उन्हें 1970 में फिल्म- ''जहाँ प्यार मिले'' के गीत 'बात ज़रा..' के लिए मिला। शारदा जी को फिल्मों में अभिनय के ऑफर  भी मिले परन्तु उन्होंने गायन को ही अपना क्षेत्र चुना। शारदा जी के चाहने वाले और आलोचक लगभग बराबर ही अगर कहा जाये तो अतिश्योक्ति न होगी। अपने फ़िल्मी सफ़र को वे सफल मानती हैं

उन्होंने ‘ग़रीबी हटाओ’, ‘मंदिर मस्जिद’, ‘मैला आँचल’, ‘तू मेरी मैं तेरा’, ‘क्षितिज’ आदि फिल्मों में  संगीत निर्देशन भी दिया है उनके संगीत निर्देशन में आशा, मुकेश, रफ़ी साहब, मन्ना डे , किशोर कुमार, महेंद्र कपूर आदि ने गाया है एचएमवी के साथ कॉन्ट्रैक्ट कर भारत में पहली बार पॉप संगीत रिकॉर्ड किया.उन्होंने  एक के बाद एक तीन एलबम निकाले, जो सफल रहे गायक मुकेश के साथ उन्होंने सबसे अधिक दोगाने गाये परन्तु वे रफ़ी साहब की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं और उनसे गायकी के गुर सीखा करती थीं

शारदा जी यूँ तो फ़िल्मी दुनिया से दूर हो गयी हैं किन्तु वे आज भी स्टेज और प्राईवेट प्रोग्राम करती रहती हैं 'तितली उडी डॉट कॉम' उनकी 'वेबसाइट' है, जहाँ उन्होंने अपने सम्पर्क सूत्र भी दिए हुए हैंज़मीन से जुडी शारदा जी से कोई भी संपर्क कर सकता हैवे बहुत सरल  स्वभाव की हैं जिसके कारण आज भी लोग उन्हें चाहते हैंवे अमेरिका में रहती हैं और बहुत सक्रीय हैं 2007 में उन्होंने ग़ालिब की ग़ज़लों की अल्बम भी निकाली थी

फिल्मों के लिए रिकॉर्ड हुआ उनका आखिरी गीत फिल्म कांच की दीवार (1986) के लिए था - 'अइयों न मारो तीर का निशाना'
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Tuesday 3 December 2013

गीतकार आनंद बक्षी एक गायक के रूप में

अनोखी और दिलचस्प जानकारी [19]
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हिंदी फिल्म जगत के लोकप्रिय और बेहद सफल गीतकार के रूप में जाने जाने वाले आनंद बक्षी को कौन नहीं जानता ? उनका जन्म 1930 में और देहांत 2002 में हुआ था।

फिल्मों में गीतकार के रूप में अमिट छाप छोड़ने वाले वे ,गायक बनने का सपना लिए मुम्बई आये थे। रावलपिंडी में जन्मे आनंद ने जलसेना में नौकरी शुरू की परन्तु वह उन्हें रास नहीं आई जिसे छोड़ कर वे लखनऊ में टेलीफोन ओपरेटर की नौकरी करने लगे। वहाँ भी दिल नहीं लगा तो मुम्बई आ कर गायक बनने के लिए संघर्ष करने लगे। बात नहीं बनी तो दिल्ली आकर  मोटर मेकेनिक का काम करना शुरू किया।  ..कवि मन था सो वहाँ भी न लगा, दोबारा मुम्बई जा कर किस्मत आजमाने पहुँच गए।

इस बार इत्तेफ़ाकन भगवान दादा ने उन्हें अपनी फिल्म बड़ा आदमी [1956] के गीतकार के रूप में लिया और फ़िल्मी दुनिया के दरवाज़े खोल दिए .मगर उन्हें पहचान मिली फिल्म 'जब -जब फूल खिले' के गीतों के साथ ,जहाँ से उन्होंने मुड़ कर नहीं देखा। गायक बनने का सपना अब भी उनके मन में था जिसे उन्होंने जल्द पूरा किया और जब भी अवसर मिला अपनी आवाज़ में गाने रिकॉर्ड किये।

इन गीतों की संख्या बहुत तो नहीं है ,ये ही कोई 9 गीत हैं जिनके बारे में मुझे मालूम है। उनके गाये कुछ गीत यहाँ दिए जा रहे हैं, शायद बहुतों के लिए जो उन्हें सिर्फ गीतकार के रूप में अब तक जानते हैं, उनके लिए यह नयी जानकारी हो।

गीत - 'मैं ढूँढ़ रहा था सपनो में ,तुम को अंजानो अपनों में '
गायक और गीतकार - आनंद बक्षी
संगीत - लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल
फिल्म- मोम की गुडिया [1972]
इसी फिल्म में लता जी के साथ - 'बागों में बहार आयी' ...
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 एक गीत आशा जी के साथ
फिल्म - महाचोर
संगीत - राहुल देव बर्मन
गीतकार और गायक - आनंद बक्षी
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चलते -चलते 
एक और रोचक जानकारी आपके लिए आनंद साहब ने आर्थिंक तंगी के दिनों में एक फिल्म में मात्र 300 रूपये के लिए एक फ़कीर का रोल भी किया था और जिस  गीत को उनपर फिल्माया गया है उसे लिखने वाले मजरूह सुल्तानपुरी और स्वर देने वाले रफ़ी साहब थे। देखिये यह गीत और पहचानिये इसमें फ़कीर को -
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